'लोरी' ये शब्द सुनते ही आप सब भी अपने बचपन की यादों में खो गए होंगे।
लोरी एक छोटा सा शब्द , पर ये एक शब्द अपने अंदर मां और उसके बच्चे की पूरी दुनिया समेटे हुए है। लोरी मां और उसके बच्चे का वो गहरा रिश्ता है जो ता उम्र उनके साथ रहता है। बच्चा कितना भी रो रहा हो मां की लोरी सुन शांत होकर सो जाता है।
ये मां- बच्चे और लोरी का सम्बंध सिर्फ बचपन तक नहीं तमाम उम्र रहता है । समय गुजरने के साथ बच्चे बड़े हो जाते हैं , अपनी अलग दुनिया बसा लेते हैं पर तब भी हर मुश्किल समय में बच्चे को मां की लोरी ही याद आती है और वो मां की गोद में सिर रखकर यही बोलता है "मां आज फिर एक बार लोरी सुनाकर सुला दें, जाने कब से चैन की ,सुकुन की वो बेफिक्री की नींद नहीं सोया, आज फिर बचपन जैसे सुला दे" मां को भी हर अकेलेपन में अपने बच्चों की तस्वीर के साथ यही लोरी याद आती है।
दिल का रिश्ता है लोरी, बच्चे की पहली सुकुन की नींद है लोरी, पहला गीत है लोरी , जो अपनी मां से सुनता है, मां की ममता का भाव है लोरी, अपनेपन का पहला अहसास है लोरी, मां का कभी ना भुलने वाला स्पर्श है लोरी। आज कल लोरी की जगह मोबाइल ने ले ली है , हम sleeping music सुनाकर अपने बच्चों को सुला देते हैं पर यकीन मानिएगा सिर्फ एक बार अपने बच्चों को खुद लोरी सुनाकर सुला कर देखिएगा आप को खुद ही एक अलग अनुभव होगा।
ये लोरी मैंने अपनी बेटी के लिए लिखी थी और लिखी भी क्या थी जब पहली बार उसे अपने हाथों में लेकर सुलाने लगी तो जो भाव दिल में आए वो खुद-ब-खुद शब्द बन गये और वो सुनते ही ऐसे शांत होकर सोई कि हम घंटों उसे सोते हुए देखते रहे और फिर वो हर दिन का नियम ही बन गया
बिना लोरी सुने वो रात को सोती ही नहीं थी और आज वो ६साल की हो गई है फिर भी आ जाती है रात को अचानक उठकर मां नींद नहीं आ रही लोरी सुनाकर सुला दो । इतना गहरा प्रभाव होता है लोरी का बच्चों के दिल-दिमाग पर। हम फिर उसे यही लोरी सुनाते हैं-
मां के अपने बच्चे को हमारी संस्कृति, रिति-रिवाज सिखाने का ये लोरी युगों-युगों से माध्यम रही है। हमारी नानी- दादी भी रातों में हमें लोरी गा-गाकर जाने कितनी अनमोल बातें सिखा देती थीं, जो बच्चों के कोरे कागज जैसे दिलों- दिमाग पर पूरी जिंदगी के लिए अमिट सीख और यादें छोड़ जाती
"खेलेंगी, झूमेगी, नाचेगी मिलकर वो सारी। निंदिया रानी जल्दी से आजा,निया को परियों की नगरी में ले जा, इऩ्द्रधनुष भी आएगा मिलने, लेकर रंग-बिरंगे रंग वो सारे। रंगों की दुनिया, परियों का मेला, कितना सुंदर सपना होगा तेरा। निंदिया रानी जल्दी से आजा,निया को परियों की नगरी में ले जा।"
मात्र एक दिन का नवजात बच्चा भी लोरी की भाषा और उसमें छुपी मां की भावना को समझता और इतनी गहराई से महसूस करता है कि कभी ज़िंदगी भर नहीं भूलता। ये आपके और आपके बच्चे के बीच में अपनेपन का एक ऐसा संबंध बना देगी जो सारी उम्र के लिए आपकी जिंदगी को प्यार और विश्वास से भर देगा ।
कहते हैं मां बच्चों की पहली शिक्षक होती है और लोरी मां की पहली शिक्षा -प्यार-दुलार , ममता और अपनेपन की जो बच्चों के लिए संस्कारों की वो नींव है जो उन्हें उनकी आने वाली जिंदगी में एक नेकदिल इंसान बनाएगी।
एक गीत की एक पंक्ति है-
"तुलसी की रामायण गाऊंगी मैं,
मीरा के पद गुन-गुनाऊंगी मैं,
वेदों -पुराणों के हर छंद को,
गा-गा के लोरी सुनाऊंगी मैं।" एक मां का अपने बच्चे को हमारी संस्कृति, रिति-रिवाज सिखाने का ये लोरी युगों-युगों से बहुत ही सरल माध्यम रही है। हमारी नानी- दादी भी रातों में हमें लोरी गा-गाकर जाने कितनी अनमोल बातें यूं ही हंसते- खेलते सिखा देती थीं, जो बच्चों के कोरे कागज जैसे दिलों- दिमाग पर पूरी जिंदगी के लिए अमिट सीख और यादें छोड़ जाती थीं।
लोरी प्यार और ममता की वो अभिव्यक्ति है जो हर कोई समझता है,
चाहे वो ज्ञानी हो या अज्ञानी, इंसान हो या पशु-पक्षी।
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