कोमा -एक अनकही अनसुनी गुमनाम यात्रा
- Anu Goel
- 2 hours ago
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कोमा में जाने के बाद क्या होता है?
एक अनकही यात्रा
कोमा, यानी गहरी बेहोशी की वह अवस्था जिसमें व्यक्ति पूरी तरह से प्रतिक्रियाहीन हो जाता है। बाहर से देखने पर वह सोया सा लगता है, लेकिन यह नींद नहीं, बल्कि शरीर और दिमाग की एक जटिल स्थिति है। कोमा को आमतौर पर गंभीर चोट, ब्रेन हेमरेज, कैंसर, ऑक्सीजन की कमी या किसी बीमारी के कारण मस्तिष्क में आई गड़बड़ी से जोड़ा जाता है। कोमा में जाने के बाद व्यक्ति के आसपास क्या होता है, और उस शख्स के भीतर क्या चलता रहता है, इसके बारे में जानने की जिज्ञासा सभी को रहती है। खासतौर पर उन लोगों के अनुभवों की बात जिनकी आंखें कोमा से जागकर फिर खुलीं – आइए जानें ऐसे ही कुछ अनसुने अनुभव और कोमा की विज्ञान में स्थिति।
कोमा की स्थिति: शरीर और दिमाग
बेहोशी: कोमा की स्थिति में शरीर नींद में दिखता है, आंखें बंद रहती हैं, और बाहरी दुनिया से संपर्क टूट जाता है।
प्रतिक्रियाहीन दिमाग: मस्तिष्क की गतिविधियां न्यूनतम हो जाती हैं। शरीर में कुछ क्रियाएं ‒ जैसे सांस लेना, हृदय की धड़कन ‒ मशीनों की मदद से चल सकती हैं।
संवेदना का अभाव: व्यक्ति को दर्द, ध्वनि या छूने जैसी उत्तेजना का अहसास नहीं होता।
समझ या बोलने की क्षमता की कमी: न तो वे बात कर सकते हैं, न अपनी स्थिति बता सकते हैं।
जागरूकता की कोई निश्चितता नहीं: कितनी देर तक कोमा रहेगा ‒ ये कुछ दिनों से लेकर महीनों-अनेक सालों तक हो सकता है।

कोमा में अनुभव – जागे लोगों की जुबानी
कोमा में रहे और फिर जागे लोगों ने अपनी अनुभव साझा किए हैं, जो पढ़कर आपको समझ आएगा कि उस अवस्था के भीतर क्या गुजरता है:
1. भारी सपनों की दुनिया
एक व्यक्ति ने बताया कि चार हफ्ते कोमा में रहना ऐसा था मानो वह किसी विचित्र सपनों की दुनिया में घूम रहा हो। उसने सपनों में खुद को अंतरिक्ष में, समुद्र के ऊपर विमान दुर्घटना में देखा, और यहां तक कि दलाई लामा और मदर टेरेसा से 'मुलाकात' की। उसके लिए यह लगातार बदलते दृश्यों वाली, कभी खत्म न होने वाली यात्रा थी।
2. डर और भ्रम की भावना
कुछ लोग कोमा में डरावने सपनों में डूबे रहे। एक महिला ने कहा कि उसने देखा – उसके पति की हत्या हो गई है। जब वह जागी, तो कुछ समय तक उसे वास्तव में यही लगा कि उसका पति मर चुका है। जब पति मिलने आया, तो महिला को लगा कि वह उसका भूत आया है, जिससे वह बहुत घबरा गई।
3. "मैं सुन रहा था लेकिन शरीर जवाब नहीं दे रहा था"
बहुत से कोमा पीड़ितों ने बताया कि वे अपने प्रियजनों की बातें सुन रहे थे, नर्सों की आवाजें सुन पा रहे थे, लेकिन किसी भी तरह प्रतिक्रिया नहीं दे सकते थे। एक तरफ वे चाह रहे थे कि "चीखें", बोलें ‒ लेकिन आवाज नहीं निकल रही थी। उन्हे महसूस हुआ कि वे 'कैद' हैं ‒ शरीर में तो थे, मगर नियंत्रण न के बराबर था
4. रोजमर्रा की जिंदगी का भ्रम
एक व्यक्ति ने बताया कि उसे लग रहा था कि वह अपने घर, ऑफिस, गाड़ी में सक्रिय है, लेकिन असल में वह कई महीनों से कोमा में था। जब वह जागा, उसे बिलकुल अचरज हुआ कि वह इस लंबी अवधि तक अपना असल जीवन नहीं जी रहा था।
5. खूबसूरत या रोमांचक अनुभव
कुछ लोगों ने कोमा की स्थिति में 'स्वर्ग', किसी सुंदर द्वीप, या सुखद दुनिया में घूमने जैसा अनुभव बताया। जैसे, किसी ने कैरिबियाई द्वीप पर घूमते हुए हर किसी से मुलाकात का जिक्र किया।
लंबी अवधि की कोमा – 9, 19, 29, 42 साल तक
ऐनी शापिरो नाम की एक महिला 29 साल तक कोमा में रहीं और फिर अचानक होश में आईं। हालाँकि, इतनी लंबी अवधि के बाद उनकी शारीरिक और मानसिक हालत सामान्य नहीं थी
पोलैंड के एक व्यक्ति लगभग 19 साल तक कोमा में रहा। जब वह उठा तो उसने अपने अनुभवों के बारे में बताया—वह पूरे समय वास्तविकता से अलग एक चेतना के 'किनारे' पर था, और सबकुछ बदल चुका महसूस कर रहा था।
अमेरिका की एडवर्ड ओ बेरा 42 साल तक कोमा में थीं—इतिहास में सबसे लंबा रिकॉर्ड! कोमा से जागने पर उन्होंने अपनी यादों में सपनों जैसी दुनिया का ज़िक्र किया।
5. कोमा के दौरान समय का एहसास
कई वर्षों तक कोमा में रहे लोगों ने जागने के बाद बताया कि उन्हें समय का कोई बोध नहीं था। कुछ ने सपनों या निजी इच्छाओं से जुड़े दृश्य महसूस किए, जैसे ठंडी जगह पर जाने की चाहत, और अगर शरीर को बुखार या ठंडा पट्टी दी जाती तो ब्रेन में यह सपना निरंतर चलता रहता था।
6. बदलती पहचान और चेतना
लंबे कोमा के बाद जागे लोगों ने कहा कि कोमा के अनुभव ने उनके दृष्टिकोण को पूरी तरह बदल दिया—स्वास्थ्य, जीवन, रिश्तों, और खुशी की अहमियत को गहराई से महसूस किया। कुछ लोगों के व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आया, तो कुछ ने जीवन में नई ऊर्जा या गहरा डर महसूस किया।
प्रेरक और विचित्र दृष्टांत
“मैं पूरे समय वास्तविक जिंदगी जीने जैसा महसूस करता था, लेकिन असल में कई सालों तक कोमा में रहा। जब जागा, तो दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी।”
“जब नर्सें मेरी मां से कह रही थीं कि मैं कुछ नहीं सुन सकती, तब मैं सुन रही थी, पर बोल नहीं पा रही थी।”
“सालों बीत गए, लेकिन मेरे लिए जैसे वक्त रुका हुआ था। सपनों में घूमते-फिरते, कभी महसूस नहीं हुआ कि मैं बेहोशी में हूँ।”
मेडिकल दृष्टि से कोमा
कोमा का बायोलॉजिकल स्वरूप:
कोमा एक लंबी बेहोशी की अवस्था है। दिमाग की कार्यशीलता बहुत कम हो जाती है, जिससे मरीज़ न तो आस-पास की चीज़ों पर ध्यान दे सकता है, न ही प्रतिक्रिया कर सकता है। व्यक्ति जीवित तो रहता है, लेकिन पूर्ण बेहोशी में रहता है.
उपचार:
कोमा की स्थिति को डॉक्टर लगातार मॉनिटर करते हैं। दवाओं, सपोर्ट सिस्टम (जैसे वेंटिलेटर), और न्यूरोलॉजिकल परीक्षण होते हैं।
फैसला और चुनौती:
कितने दिन कोमा रहेगा, कब जागेगा, होगा या नहीं, यह निश्चित नहीं किया सकता। रिसर्च बताती है कि डायग्नोसिस कठिन है; कई मामलों में व्यक्ति कभी नहीं जागते.
कोमा में व्यक्ति का मस्तिष्क कैसे काम करता है?
कोमा की अवस्था में व्यक्ति का मस्तिष्क एक जटिल और गहराई से प्रभावित स्थिति में होता है। सामान्यतः हमारे मस्तिष्क में 'चेतना' और 'प्रतिक्रियाशीलता' को नियंत्रित करने वाली कई पार्ट्स होती हैं—जैसे सेरेब्रम (मस्तिष्क का मुख्य हिस्सा), ब्रेन स्टेम और रेटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम (RAS). इनका सही प्रकार से काम करना व्यक्ति को जागरूक और प्रतिसादी बनाता है।
जब कोमा की स्थिति आती है, तब:
सेरेब्रम के दोनों हेमिस्फीयर या ब्रेन स्टेम का ऊपरी भाग प्रभावित हो जाता है, जिससे मस्तिष्क सतर्कता, जागरूकता और संज्ञानात्मक कार्यों को करने में असमर्थ हो जाता है.
रेटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम (RAS)—यह मस्तिष्क का हिस्सा है जो आलर्टनेस और चेतना को नियंत्रित करता है—यदि यह क्षतिग्रस्त हो जाए तो व्यक्ति कोमा में चला जाता है.
मस्तिष्क गतिविधि न्यूनतम हो जाती है। व्यक्ति अपने पर्यावरण, लोगों, आवाज़ों और अन्य उत्तेजनाओं के प्रति प्रतिक्रिया नहीं कर पाता, न ही जाग सकता है.
मास्टिष्क की ऊर्जा जरूरतें कम होती हैं, लेकिन ऑक्सीजन या शर्करा (ग्लूकोज) की कमी, रक्त प्रवाह में गड़बड़ी, चोट, संक्रमण, ट्यूमर या ब्लीडिंग मस्तिष्क की कार्यशैली को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं.
जिस व्यक्ति को कोमा होता है, उसमें:
. आंखें बंद रहती हैं।
. शरीर में स्वचालित प्रतिक्रियाएँ (जैसे सांस लेना, दिल की धड़कन) जारी रहती हैं, लेकिन ये भी मशीनों या मेडिकल सपोर्ट से बनाए जाती हैं।
. चेतना का स्तर बहुत कम होता है—न कोई समझ, न प्रतिक्रिया.
. दर्द या स्पर्श जैसी उत्तेजना पर भी मस्तिष्क की प्रतिक्रिया नहीं मिलती।
कोमा से बाहर आना
जब कोई कोमा से जागता है – तो वह पहले बहुत भ्रमित रहता है। शरीर बेहद कमज़ोर हो जाता है, बोलने-चलने में कठिनाई होती है। डॉक्टरों, नर्सों और परिवार के प्यार-सहारे से धीरे-धीरे व्यक्ति रिकवर करता है। लेकिन कई बार दिमाग पर स्थायी असर रह जाता है; कुछ लोग पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाते।
सवाल-जवाब: कोमा में क्या आदमी सुन या महसूस कर सकता है?
बहुत से पर्सनल अनुभव में बताया गया है, कि कोमा की अवस्था में कई लोग आसपास की बातचीत, आवाजें या म्यूजिक सुन सकते हैं, लेकिन उनके पास प्रतिक्रिया करने की शक्ति नहीं होती। विज्ञान में इसे डिफरेंट लेवल ऑफ कांसियसनेस माना गया है।
कुछ प्रेरक अनुभव – आपबीती
“कोमा में ऐसा लगा कि मैं किसी अंधेरी गुफा में हूँ। सिर्फ आवाज़ें सुनता था, लेकिन जवाब नहीं दे सकता था। फिर धीरे-धीरे धुंध साफ हुई और असली दुनिया दिखने लगी।”
— एक कोमा से जागे व्यक्ति का अनुभव
“मैं पूरी कोशिश कर रहा था बोलने की, चीखने की, लेकिन शरीर जवाब नहीं दे रहा था। बहुत डर लग रहा था, पर जब परिवार के लोग शाम को कमरे में आते, गाँव के गीत या संगीत बजता, तो अंदर-अंदर मुझे तसल्ली होती थी।”
— एक अन्य कोमा पीड़ित के बोल
कोमा – रहस्य, चुनौती और उम्मीद
कोमा मानव मस्तिष्क और शरीर का एक अद्भुत रहस्य है, जहां जीवन और मृत्यु की सीमाएं बहुत पतली हो जाती हैं। आधुनिक विज्ञान से हम धीरे-धीरे कोमा की स्थिति को समझ पा रहे हैं, लेकिन अब भी बहुत कुछ जानना बाकी है। कोमा से बाहर आने वालों के अनुभव हमें सच्चाई, उम्मीद और इंसानी जज़्बे को दिखाते हैं – जो जीवन के संघर्ष में भी चमत्कार पैदा कर सकता है।
आखिर में
कोमा की अवस्था विज्ञान, दार्शनिकता और जीवन से जुड़े अनगिनत सवालों से भरी है। अगर आपके आसपास कोई कोमा में है तो उसकी देखभाल, भावनात्मक समर्थन और लगातार मेडिकल मॉनिटरिंग बहुत जरूरी है।
हर कोमा पीड़ित की अपनी अलग कहानी और अनुभव होते हैं, लेकिन एक बात समान है – "जीवन को फिर से हासिल करने की उमंग, और उसके बाद की जिंदगी की नयी परिभाषा"
कोमा में व्यक्ति का मस्तिष्क केवल जीवन रक्षक यंत्रों और न्यूनतम क्रियाओं तक सीमित रहता है। यह स्थिति तब आती है जब मस्तिष्क के बेहद महत्वपूर्ण हिस्से स्थाई या अस्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे चेतना की पूरी प्रक्रिया बंद हो जाती है। कोमा की गंभीरता और रिकवरी इस बात पर निर्भर करती है कि मस्तिष्क कितनी क्षति झेल रहा है और मेडिकल देखभाल कितनी असरदार है।
कोमा का सफर रहस्यमय, डरावना, रोमांचक और कभी-कभी उम्मीदों से भरा होता है – जिसका अनुभव वही जानते हैं, जो इस यात्रा से वापस लौटे हैं।
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