जगन्नाथ पुरी श्रृंखला – भाग २ नवकलेवर: जब भगवान मरते हैं और पुनर्जन्म लेते हैं
- Anu Goel
- 21 hours ago
- 5 min read
(My-Lekh द्वारा एक विशेष प्रस्तुति)
"ईश्वर को कभी मृत्यु नहीं आती, पर जगन्नाथ पुरी में हर १२ वर्ष बाद वे मरते भी हैं... और फिर एक नए रूप में जन्म लेते हैं। यही है नवकलेवर।”
पुरी का मंदिर रहस्य और श्रद्धा का सजीव संगम है। लेकिन जब बात नवकलेवर की आती है, तो यह कोई परंपरा नहीं, बल्कि एक ऐसी अद्भुत लीला है जिसे देखकर खुद विज्ञान भी मौन हो जाता है। यह वो क्षण होता है जब ईश्वर अपने पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर में प्रवेश करते हैं — मृत्यु की गोद में पुनर्जन्म!
नवकलेवर क्या है?
"नव" यानी नया, और "कलेवर" यानी शरीर।हर १२ से १९ वर्षों में (जब अधिमास आता है), भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की मूर्तियाँ बदली जाती हैं। लेकिन ये केवल मूर्तियाँ नहीं होतीं — इनमें ब्रह्म तत्व (divine energy) होता है, जो एक से दूसरी मूर्ति में स्थानांतरित किया जाता है।
यह प्रक्रिया किसी यंत्र से नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी और गुप्त अनुष्ठान से होती है।
“दारू ब्रह्म” और रहस्यमयी रात — ये नवकलेवर की सबसे रहस्यमयी, आध्यात्मिक और भावनात्मक धड़कनें हैं। ये केवल धार्मिक क्रियाएं नहीं, बल्कि ईश्वर और भक्त के रिश्ते की अद्भुत अभिव्यक्ति हैं।
दारू ब्रह्म की खोज — जब भगवान अपने नए शरीर का चुनाव करते हैं।
“दारू ब्रह्म” — इसका अर्थ है ऐसा दारु (लकड़ी), जिसमें ब्रह्म अर्थात ईश्वर स्वयं वास करते हैं।नवकलेवर से पहले भगवान की मूर्तियों को बनाने के लिए जिस नीम के पेड़ को चुना जाता है, वह सर्वसाधारण पेड़ नहीं होता। उसकी तलाश में निकलती है एक गुप्त और पवित्र यात्रा — ‘दारू ब्रह्म अनुसंधान’।
कौन खोजते हैं यह पेड़?
इस कार्य को अंजाम देते हैं — दायता परिवार के पुजारी, जो स्वयं को भगवान जगन्नाथ का वंशज मानते हैं।वे रथ यात्रा से कुछ महीने पहले पुरी से निकलते हैं — नंगे पैर, बिना किसी वाहन के, बिना किसी आधुनिक यंत्र के।
दारु ब्रह्म की खोज सिर्फ एक पेड़ नहीं अपितु भगवान के नए शरीर की तलाश है।
पुरानी मूर्तियाँ त्यागने से पहले, मंदिर के विशेष सेवक दायता पुजारी जंगलों की ओर निकलते हैं, "दारु ब्रह्म" की खोज में यानी वह नीम का पेड़ जिसमें ईश्वर विराजमान होंगे, परंतु यह कोई साधारण पेड़ नहीं होता। इसके लिए कई गुप्त संकेतों को खोजा जाता है:
किन संकेतों से पहचाना जाता है ‘दारू ब्रह्म’?
दारू ब्रह्म वाले पेड़ को खोजने के लिए कुछ गुप्त संकेत होते हैं, जिनका वर्णन केवल शास्त्रों और परंपरा में सुरक्षित है। ये संकेत हैं:
पेड़ के पास कोई श्मशान भूमि, सांप का बिल या नदी का संगम हो।
पेड़ पर शंख, चक्र, गदा और पद्म जैसे चिन्ह प्राकृतिक रूप से मौजूद हों।
पेड़ के चार प्रमुख शाखाएं हों, जो भगवान के चार अंगों का प्रतीक मानी जाती हैं।
पेड़ की जड़ें जमीन के ऊपर थोड़ी उभरी हुई होती हैं, मानो स्वयं बाहर आने को आतुर हों।
जिस स्थान पर पेड़ हो, वहाँ वातावरण अलौकिक शांति और अद्भुत ऊर्जा से भरा हो। उस स्थान पर मौन वातावरण और दिव्य अनुभूति होती हो।
कई बार लोग बताते हैं कि जब यह पेड़ मिलता है तो हवा का बहाव बदल जाता है, पक्षियों की आवाज़ें अचानक रुक जाती हैं, और भक्तों की आंखों से अश्रु बहने लगते हैं।
यह केवल एक पेड़ नहीं, स्वयं भगवान द्वारा चुना गया नया शरीर होता है।
एक बार यह पेड़ मिल जाता है, तो उसे बिना लोहे के औज़ारों से, विशेष मंत्रों के साथ काटा जाता है। पेड़ को ऐसे उठाया जाता है जैसे कोई शव यात्रा निकाली जा रही हो — भक्तों की आंखों में आँसू, और वातावरण में सन्नाटा।

रहस्यमयी रात्रि – जब "ब्रह्म तत्व "अपने नए शरीर में प्रवेश करता है
इस रात को कहा जाता है — "ब्रह्म संचार" की रात।यह ऐसी रात है, जिसे न कोई कैमरा कैद कर सकता है, न कोई आँख पूरी तरह देख सकती है।
जब नई मूर्तियाँ बनकर तैयार हो जाती हैं, तो होती है सबसे रहस्यमयी और भावुक रात जिसे ब्रह्म तत्व स्थानांतरण की रात्रि कहते हैं।
क्या होता है इस रात?
मंदिर पूरी तरह बंद कर दिया जाता है।सामान्य जन को प्रवेश वर्जित होता है।
पुरी नगर में ब्लैकआउट कर दिया जाता है — ना बिजली, ना आवाज़।
केवल कुछ विशिष्ट सेवक-पुजारी, जिन्हें महापात्र और दायता कहा जाता है, ही गर्भगृह में प्रवेश करते हैं।
वे भी आँखों पर काली पट्टी बांधकर और हाथों में दस्ताने पहनकर जाते हैं — ताकि ‘ब्रह्म तत्व’ को न देखा जाए, न स्पर्श किया जाए।
वे पुरानी मूर्ति के अंदर छिपा 'ब्रह्म तत्व' (divine core) निकालकर नई मूर्ति में स्थापित करते हैं
कहते हैं, यह तत्व हजारों वर्षों से एक से दूसरे शरीर में स्थानांतरित होता आ रहा है, और इसकी शक्ति इतनी प्रबल है कि जो पुजारी इसे छूते हैं, उनका जीवन बदल जाता है। कई बार वे दीर्घकाल तक बीमार पड़ जाते हैं, कुछ की मृत्यु भी हो जाती है।
यह कोई मूर्ति नहीं — यह ईश्वर का शुद्धतम रूप है, जो एक शरीर छोड़कर दूसरे में प्रवेश करता है।
ब्रह्म तत्व क्या है ?
माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में एक ऐसा तत्व है जो:
किसी भी प्रकार की धातु, लकड़ी या पदार्थ नहीं है,
बल्कि एक प्राचीन, दिव्य ऊर्जा है, जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर छोड़ा था।
यह तत्व हर नवकलेवर में पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में स्थानांतरित किया जाता है।
यह प्रक्रिया इतनी शक्तिशाली क्यों मानी जाती है?
यह कार्य करते समय कई पुजारी भावनाओं में बहकर बेहोश हो जाते हैं,
कुछ को ज्वर हो जाता है, और
परंपरा मानती है कि कुछ पुजारी इसके बाद अधिक समय तक जीवित नहीं रहते।
क्योंकि यह कार्य मृत्यु और पुनर्जन्म के मध्य संक्रांति जैसा होता है —एक ऐसा क्षण जब ईश्वर एक शरीर को त्यागकर दूसरे में प्रवेश करते हैं।
क्यों रखा जाता है मौन?
माना जाता है कि इस प्रक्रिया में यदि किसी ने ब्रह्म तत्व को देख लिया या आवाज़ कर दी, तो उसे मानसिक या शारीरिक कष्ट हो सकता है।इसलिए पुरी की गलियाँ भी उस रात मौन साधती हैं — केवल दीपकों की रौशनी और भक्तों की रुकी हुई सांसें ही उस रात का संगीत बनती हैं।
यह मृत्यु नहीं, आत्मा का उत्सव है
“जब भगवान भी अपने शरीर को त्याग सकते हैं, तो मृत्यु से डरना कैसा?”
यह रात हमें सिखाती है कि
शरीर नश्वर है, आत्मा शाश्वत।
हर अंत, एक नई शुरुआत की भूमिका है।
और यह कि ईश्वर भी हमें यही पाठ पढ़ाते हैं — ‘जियो, बदलो, और फिर से जन्म लो।’
भावुकता और श्रद्धा का महासागर
पुरी की गलियों में उस रात एक अलग सन्नाटा होता है।लोग छतों पर चुपचाप दीपक जलाते हैं।कुछ आंखें नम होती हैं, कुछ दिलों में आश्चर्य, और कुछ में श्रद्धा।
"ये कोई शोक नहीं, ये पुनर्जन्म का उत्सव है।ईश्वर मृत्यु को स्वीकार करके भी अमर हो जाते हैं।"
भगवान का अंतिम संस्कार
नवकलेवर के बाद, पुरानी मूर्तियाँ जमीन में समाधि दी जाती हैं। हाँ, ठीक वैसे जैसे किसी मानव का अंतिम संस्कार होता है।
पुरी मंदिर परिसर में एक स्थान है — कोहिली बैकुंठ, जहाँ भगवान की पुरानी मूर्तियाँ गुप्त रूप से दफनाई जाती हैं। यह क्रिया इतनी पवित्र और रहस्यमयी होती है कि कभी कोई इसे देख नहीं पाता।
उस दिन पुजारी भी उदास होते हैं — क्योंकि उन्होंने वर्षों तक जिन प्रतिमाओं की पूजा की, वे अब उन्हें त्यागनी पड़ती हैं।
दारू ब्रह्म की खोज और ब्रह्म तत्व का स्थानांतरण एक ऐसा अध्याय है जो शास्त्रों से परे, भावनाओं से जुड़ा हुआ है।यह वह स्थल है जहाँ विश्वास विज्ञान से बड़ा हो जाता है, और श्रद्धा सभी सीमाओं को पार कर जाती है।
नवकलेवर न केवल एक धार्मिक प्रक्रिया है, बल्कि वो संदेश है जो जीवन की गहराई को छूता है —कि शरीर बदलता है, पर आत्मा अमर है।
कि हर अंत में एक नया आरंभ छिपा होता है।
पुरी में ईश्वर भी यही करते हैं — और हमें जीवन का सत्य सिखाते हैं।
यह जानकर मन झुकता है कि ईश्वर खुद बदलते हैं — ताकि हम बदलाव से ना डरें।
👉 अगला भाग पढ़ें:भाग ३ – रसोई का रहस्य: जब ऊपर रखा पतीला पहले पकता है और प्रसाद कभी खत्म नहीं होता।
Comments